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नियामक संस्था
जन केंद्रित न्यायालय के रूप में उच्चतम न्यायालय
« »23-Aug-2023
उच्चतम न्यायालय अपनी विविधता के कारण वास्तव में एक जन केंद्रित न्यायालय है, पॉली-वोकल नहीं। स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स |
चर्चा में क्यों?
उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन (Supreme Court Bar Association's (SCBA) के अभिनंदन समारोह में बोलते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने कहा कि उच्चतम न्यायालय अपनी विविधता के आधार पर एक जन-केंद्रित न्यायालय है, न कि पॉली-वोकल। उच्चतम न्यायालय के नवनियुक्त न्यायाधीश - न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयाँ और न्यायमूर्ति एस. वी.एन भट्टी।
पृष्ठभूमि
- भारत के मुख्य न्यायाधीश ने इस समारोह में कहा कि उच्चतम न्यायालय की कॉलेजियम में न्यायाधीश होते हैं, जिसमें एक न्यायाधीश महाराष्ट्र से है जो पश्चिम बंगाल के एक न्यायाधीश के साथ मिलकर हरियाणा राज्य से संबंधित किसी मामले का निर्णय करता है इसलिये यह महाराष्ट्र या दिल्ली का उच्चतम न्यायालय नहीं है, बल्कि यह भारत का उच्चतम न्यायालय है और यहाँ हमारा उद्देश्य यह प्रतिबिंबित करना है कि यह न्यायालय भारत की विविधता को दर्शाता है।
- उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम का एक प्रमुख कर्त्तव्य विविधता सुनिश्चित करना और "जन-केंद्रित न्यायालय" बनाना है।
- जन-केंद्रित कानूनी और न्यायिक सेवाएँ उन लोगों की कानूनी जरूरतों और कानूनी क्षमताओं की अनुभवजन्य समझ को संदर्भित करती हैं जिन्हें सहायता की आवश्यकता होती है या वे सहायता चाहते हैं।
- भारत के मुख्य न्यायाधीश ने आगे कहा कि “लोग न्यायपालिका पर तभी भरोसा करना शुरू करेंगे जब वे न्याय देने वाले लोगों में अपना प्रतिबिंब देखेंगे।”
- भारत के मुख्य न्यायाधीश ने अपने कार्यकाल के शुरुआती महीनों के दौरान उच्चतम न्यायालय में नियुक्त न्यायाधीशों के समक्ष आने वाली मुख्य चिंताओं में से एक, यानी दिल्ली में आवास, को भी उठाया, क्योंकि नव नियुक्त न्यायाधीशों को अक्सर महीनों तक राज्य सरकार सदन (गेस्ट हाउस) में रहना पड़ता है।
कॉलेजियम प्रणाली
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 124(2) और 217 के तहत कॉलेजियम प्रणाली क्रमशः उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित है।
- कॉलेजियम प्रणाली न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण की प्रणाली है जो उच्चतम न्यायालय के निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई है, न कि संसद के किसी अधिनियम या संविधान के प्रावधान द्वारा।
- कॉलेजियम प्रणाली को प्रतिपादित करने वाले मामले इस प्रकार हैं:
- प्रथम न्यायाधीश मामला – एस. पी. गुप्ता बनाम भारत संघ (1981)
- उच्चतम न्यायालय के फैसले में कहा गया कि अनुच्छेद 124 में 'परामर्श' शब्द का अर्थ सहमति नहीं है। इसलिये, राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के परामर्श के आधार पर निर्णय लेने के लिये बाध्य नहीं थे।
- द्वितीय न्यायाधीश मामला - उच्चतम न्यायालय एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन और अन्य बनाम भारत संघ (1993)
- उच्चतम न्यायालय ने कॉलेजियम प्रणाली की शुरुआत करते हुए कहा कि 'परामर्श' का वास्तव में अर्थ 'सहमति' है।
- इसमें कहा गया है कि यह CJI की व्यक्तिगत राय नहीं थी, बल्कि उच्चतम न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के परामर्श से बनाई गई एक संस्थागत राय थी।
- तृतीय न्यायाधीश मामला - 1998 के 1 विशेष संदर्भ में
- राष्ट्रपति के संदर्भ पर उच्चतम न्यायालय ने (अनुच्छेद 143) कॉलेजियम को पाँच सदस्यीय निकाय तक विस्तारित किया, जिसमें CJI और उनके चार वरिष्ठतम सहयोगी शामिल थे।
- उच्चतम न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये भी सख्त दिशानिर्देश दिये।
- चतुर्थ न्यायाधीश मामला - एससी एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड-एसोसिएशन और अन्य बनाम भारत संघ (2015)
- संविधान (99वें संशोधन द्वारा) के तहत राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 (National Judicial Appointments Commission (NJAC)) बनाया जिसमें अनुच्छेद 124A को भारत के संविधान में सम्मिलित किया गया था। इस अधिनियम के कार्यों और कानून बनाने की संसद की शक्ति को अनुच्छेद 124b और 124c में रेखांकित किया गया था।
- वर्तमान मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 124A राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के न्यायिक घटक को पर्याप्त प्रतिनिधित्व प्रदान नहीं करता है इसलिये इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता का उल्लंघन माना गया जो संविधान का मूलभूत ढाँचा है। न्यायालय ने NJAC को अमान्य कर दिया और पूर्व की व्यवस्था बहाल कर दी।
- प्रथम न्यायाधीश मामला – एस. पी. गुप्ता बनाम भारत संघ (1981)
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (National Judicial Appointments Commission (NJAC)
- राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग 99वें संविधान संशोधन अधिनियम 2014 द्वारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 124A के तहत गठित एक निकाय था।
- इसमें शामिल थे:
- भारत के मुख्य न्यायाधीश, अध्यक्ष, पदेन।
- उच्चतम न्यायालय के दो अन्य वरिष्ठ न्यायाधीश --सदस्य, पदेन।
- विधि एवं न्याय मंत्रालय के प्रभारी केंद्रीय मंत्री, पदेन सदस्य के रूप में।
- प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा में विपक्ष के नेता या जहाँ विपक्ष का कोई नेता नहीं है, वहाँ लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता की समिति द्वारा दो प्रतिष्ठित व्यक्तियों को नामित किया जाएगा।
- प्रतिष्ठित व्यक्ति को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक या महिला वर्ग के व्यक्तियों में से नामित किया जाएगा।
- ऐसे प्रतिष्ठित व्यक्ति को तीन साल की अवधि के लिये नामांकित किया जाएगा और वह पुनर्नामांकन के लिये पात्र नहीं होगा।
- यदि इस व्यवस्था को जारी रखा जाता है, तो राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण के लिये कॉलेजियम प्रणाली की जगह ले लेता, जैसा कि न्यायिक घोषणाओं के माध्यम से उच्चतम न्यायालय द्वारा लागू किया गया था।
न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित संवैधानिक प्रावधान
अनुच्छेद 124(2) - उच्चतम न्यायालय की स्थापना और गठन – (2) उच्चतम न्यायालय के और राज्यों के उच्च न्यायालयों के ऐसे न्यायाधीशों से परामर्श करने के पश्चात्, जिनसे राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिये परामर्श करना आवश्यक समझे, राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र (*अनुच्छेद 124A में निर्दिष्ट राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की सिफारिश पर) द्वारा उच्चतम न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को नियुक्त करेगा और वह न्यायाधीश तब तक पद धारण करेगा जब तक वह पैंसठ वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता है:
परन्तु मुख्य न्यायमूर्ति से भिन्न किसी न्यायाधीश की नियुक्ति की दशा में भारत के मुख्य न्यायमूर्ति से सदैव परामर्श किया जाएगा:
परन्तु यह और कि --
(क) कोई न्यायाधीश, राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा;
(ख) किसी न्यायाधीश को खंड (4) में उपबंधित रीति से उसके पद से हटाया जा सकेगा।
अनुच्छेद 217 - उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति और पद की शर्तें (1) भारत के मुख्य न्यायाधीश से, उस राज्य के राज्यपाल से और मुख्य न्यायाधीश से भिन्न किसी न्यायाधीश की नियुक्ति की दशा में उस उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करने के पश्चात्, राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र ((*अनुच्छेद 124A में निर्दिष्ट राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की सिफारिश पर) द्वारा उच्च न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को नियुक्त करेगा और वह न्यायाधीश अपर या कार्यकारी न्यायाधीश की दशा में अनुच्छेद 224 में उपबंधित रूप में पद धारण करेगा और किसी अन्य दशा में तब तक पद धारण करेगा, जब तक वह बासठ वर्ष की आयु प्राप्त नहीं कर लेता है परंतु-
(क) कोई न्यायाधीश, राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा।
(ख) किसी न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिये अनुच्छेद 124 के खंड (4) में उपबंधित रीति से उसके पद से राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकेगा।
(ग) किसी न्यायाधीश का पद, राष्ट्रपति द्वारा उसे उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किये जाने पर या राष्ट्रपति द्वारा उसे भारत के राज्यक्षेत्र में किसी अन्य उच्च न्यायालय को, अंतरित किये जाने पर रिक्त हो जाएगा।
(2) कोई व्यक्ति, किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिये तभी अर्हित होगा, जब वह भारत का नागिरक है और-
(क) भारत के राज्यक्षेत्र में कम से कम दस वर्ष तक न्यायिक पद धारण कर चुका है; या
(ख) किसी उच्च न्यायालय का या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों का लगातार कम से कम दस वर्ष तक अधिवक्ता रहा है;
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स्पष्टीकरण-
इस खंड के प्रयोजनों के लिये-
(क) भारत के राज्यक्षेत्र में न्यायिक पद धारण करने की अवधि की संगणना करने में वह अवधि भी सम्मिलित की जाएगी, जिसके दौरान कोई व्यक्ति न्यायिक पद धारण करने के पश्चात किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रहा है या उसने किसी अधिकरण के सदस्य का पद धारण किया है अथवा संघ या राज्य के अधीन कोई ऐसा पद धारण किया है, जिसके लिये विधि का विशेष ज्ञान अपेक्षित है;
(1) किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रहने की अवधि की संगणना करने में वह अवधि भी सम्मिलित की जाएगी, जिसके दौरान किसी व्यक्ति ने अधिवक्ता होने के पश्चात न्यायिक पद धारण किया है या किसी अधिकरण के सदस्य का पद धारण किया है अथवा संघ या राज्य के अधीन कोई ऐसा पद धारण किया है, जिसके लिये विधि का विशेष ज्ञान अपेक्षित है;
(ख) भारत के राज्यक्षेत्र में न्यायिक पद धारण करने या किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रहने की अवधि की संगणना करने में इस संविधान के प्रारंभ से पहले की वह अवधि भी सम्मिलित की जाएगी, जिसके दौरान किसी व्यक्ति ने यथास्थिति, ऐसे क्षेत्र में जो 15 अगस्त, 1947 से पहले भारत शासन अधिनियम, 1935 में परिभाषित भारत में समाविष्ट था, न्यायिक पद धारण किया है या वह ऐसे किसी क्षेत्र में किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता रहा है।
(3) यदि उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश की आयु के बारे में कोई प्रश्न उठता है तो उस प्रश्न का विनिश्चय भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करने के पश्चात राष्ट्रपति का विनिश्चय अंतिम होगा।
* संविधान (99वाँ संशोधन) अधिनियम, 2014, धारा 2 द्वारा प्रतिस्थापित, "उच्चतम न्यायालय और राज्यों में उच्च न्यायालय के ऐसे न्यायाधीशों से परामर्श के बाद जिन्हें राष्ट्रपति इस उद्देश्य के लिये आवश्यक समझे" (13-4-2015 से)। इस संशोधन को उच्चतम न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन और अन्य बनाम भारत संघ के मामले में अपने निर्णय दिनांक 16-10-2015 में इसे रद्द कर दिया है।
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश
- वर्तमान में भारत के मुख्य न्यायाधीश सहित उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या 34 है।
- ऐसा व्यक्ति जो भारत का नागरिक है, वह 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बन सकता है और उसके पास अनुच्छेद 124 के अनुसार निम्नलिखित योग्यताएँ होनी चाहिये:
- वह लगातार कम से कम पाँच वर्षों तक किसी उच्च न्यायालय या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों का न्यायाधीश रहा हो; या
- वह कम से कम दस वर्षों तक किसी उच्च न्यायालय या ऐसे दो या अधिक न्यायालयों में लगातार अधिवक्ता रहा हो; या
- राष्ट्रपति की राय में वह एक प्रतिष्ठित न्यायविद् हो।
- उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाना भारत के संविधान के अनुच्छेद 124(4) के प्रावधानों के अनुसार निम्नलिखित तरीके से हो सकता है:
- अनुच्छेद 124(4) - उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश को उसके पद से तब तक नहीं हटाया जाएगा जब तक साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर ऐसे हटाए जाने के लिये संसद के प्रत्येक सदन द्वारा अपनी कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा समर्थित समावेदन, राष्ट्रपति के समक्ष उसी सत्र में रखे जाने पर राष्ट्रपति ने आदेश नहीं दे दिया है।